अस्पृश्यता और भेदभावपूर्ण व्यवहार के खिलाफ आजीवन लड़ने वाले संत गाडगे महाराज के साथ अस्पृश्यता और भेदभावपूर्ण बर्ताव क्यों?
गाडगे जन्मतिथि विशेष
साथियों
आज (23 फरवरी, 2019) एक ऐसे सख्श की जन्मतिथि है जिसने दुनिया को तो नहीं पर भारत को जरूर सफाई से रहने की तमीज सिखाई। जिसने देवी-देवताओं (पत्थरों के) की सेवा और पूजा को व्यर्थ मान कर निर्धनों, उपेक्षितों, अशिक्षितों आदि की सेवा को ही ईश्वर की सच्ची सेवा माना। जिसने भूखों को रोटी देना ही सच्चा धर्म माना। जिसने Cleanliness is Godliness के अर्थ को सही मायने में लोगों को समझाया। जिसने गांधी जैसे महात्मा को भी यह समझाया कि ‘हम ऐसे भोजन नहीं करते, भोजन का शुक्रिया हम सेवा करके देते हैं।’ जिसके भोजन के बारे में गांधी तक को भी कहना पड़ा कि ‘गरीब लोग जैसा भोजन करते हैं, बाबा भी वैसा भोजन करते हैं।’
जब भी कभी स्वच्छता अभियान, सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने, वंचितों के लिए शिक्षा, छात्रावास की व्यवस्था करने, निःस्वार्थ सेवा, पशु-पक्षियों अर्थात मूक जीवों की रक्षा करने, धर्मशाला बनवाने आदि की बात की जाएगी तब-तब वह सख़्श न चाहते हुए भी याद आएगा। उनके कार्यों के कारण ही उनके अनुयायियों में दीन-हीन व्यक्ति से लेकर मुख्यमंत्री और कानून मंत्री तक शामिल थे।
वे अनपढ़ होते हुए भी यह जानते थे कि ‘निरक्षरता अन्याय की जन्मदात्री है’। इसीलिए उन्होंने विद्यालयों के साथ छात्रावासों का भी निर्माण करवाया जिससे बच्चे निर्बाध रूप से वहाँ रहकर शिक्षा प्राप्त कर सकें। शिक्षा के प्रति जितना काम उन्होंने अनपढ़ रहने के बावजूद और वह भी गुलाम भारत में किया उतना काम तो आज के शिक्षामंत्री भी नहीं कर पाते। इन कामों के प्रति ईमानदारी इतनी की दूसरों का ‘खून तक चूस लेने वाले’ महाजनों ने भी खुलकर उनका सहयोग किया। जिस गौशाला या गौरक्षा की बात गांधी और अन्य लोगों ने बहुत बाद में की उस पर उन्होंने बहुत पहले ही ध्यान दिया था और जगह-जगह गौशालाओं का निर्माण कराया था। मरीजों के लिए अस्पताल तो कुष्ठ रोगियों के लिए कुष्ठ आश्रम और जानवरों की बलि देने से रोकने के लिए जीव दया नामक संस्थाओं की स्थापना की। एक साधारण से दिखने वाले इंसान ने आज-कल के कई मंत्रियों के बराबर काम उस दौर में अकेले किया।
सरकारों ने उनके द्वारा किए गए सारे कार्यों का अनुकरण एक-एक कर, कर लिया और उन्हीं कार्यों को अन्य महापुरुषों के नाम पर योजनाएं बना कर संचालित किया और कर भी रही हैं, परंतु अस्पृश्यता और भेदभावपूर्ण व्यवहार के खिलाफ आजीवन अहिंसात्मक लड़ाई लड़ने वाले तथा सबके दिलों पर राज करने वाले संत गाडगे महाराज के साथ अस्पृश्यता और भेदभावपूर्ण व्यवहार कर रही हैं। तभी तो स्वच्छता अभियान, सामूहिक विवाह आदि जैसी तमाम योजनाएं पहले नेहरू-गांधी परिवार और अब सरदार वल्लभ भाई पटेल और दीन दयाल उपाध्याय आदि के नाम (कुछ अपवादों को छोड़कर) पर चलाई जा रही हैं।
मेरे ऐसा कहने का तात्पर्य यह बिल्कुल नहीं है कि इनके नाम से योजनाएं चलाए जाने पर आपत्ति है, आपत्ति है तो इस बात पर कि अन्य जिन विभूतियों ने आजादी के पहले या परतंत्र भारत में जो उल्लेखनीय कार्य किए उनको स्थान क्यों नहीं दिया जाता या जिन्होंने जो महत्वपूर्ण कार्य किया है उस तरह की योजनाएं और परियोजनाएं उन्हीं महापुरुषों के नाम पर क्यों नहीं चलाई जातीं।
प्रसिद्ध गांधीवादी और पर्यावरणविद अनुपम मिश्र ने 7-8 वर्ष पूर्व कहा था कि, ‘‘राष्ट्रीय किस्म की योजनाओं का नामकरण किसी न किसी राष्ट्रीय स्तर की विभूति पर होना चाहिए लेकिन यह प्रधानमंत्री जैसे पद तक सिमट कर रह जाए, ऐसी राष्ट्रीय परिभाषा संकीर्ण कहलाएगी। नाम ऐसे लोगों पर हो जिन्हें पूरे देश में उनके पद के अलावा भी जाना जाता हो और आदर दिया जाता हो।’’
उदाहरण के लिए यदि हम देखें तो लड़कियों की शिक्षा के लिए पहला स्कूल महात्मा ज्योतिबा फुले ने खोला था पर उनके नाम पर शिक्षण संस्थान नाम मात्र के ही होंगे। ठीक ऐसी ही उपेक्षा गाडगे बाबा के नाम के साथ की जा रही है। एक प्रसिद्ध कहावत है कि ‘संतों की कोई जाति नहीं होती’ परंतु वंचित तबके से आने वाले समाज सुधारकों और संतों के द्वारा उल्लेखनीय कार्य किए जाने के बाद भी उन्हें वह सम्मान नहीं दिया गया/दिया जा रहा है जिसके वे हकदार हैं। विभिन्न सरकारों द्वारा उनके साथ आज भी अस्पृश्यता और भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है। सरकारी नुमाइन्दे उनकी जयंती समारोह और अन्य अवसरों पर बड़े-बड़े बोल तो बोल देते हैं परंतु जब उनके नाम से कुछ करने की बारी आती है तो उन्हें याद तक नहीं करते। गाडगे बाबा ने जो भी कार्य किया सम्पूर्ण मानव जाति के लिए किया फिर भी उनके वंचित तबके के होने कारण ही उनके नाम के साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है नहीं तो स्वच्छता अभियान जैसी योजना का नाम संत गाडगे महाराज के नाम पर ही होता। उन्हें बहुत हद तक महाराष्ट्र तक ही सीमित कर दिया गया जबकि उन्होंने पूरे भारत भर में भ्रमण कर लोगों को जागरूक करने का काम किया। नवंबर, 2017 में दिल्ली से मोहन नगर (गाजीपुर-मोहन नगर मार्ग) की तरफ जाने वाले संत गाडगे महाराज मार्ग का नाम रातों-रात बदलकर पंडित मदन मोहन मालवीय मार्ग कर दिया गया है, तब से लेकर आज तक तमाम पत्राचार के बाद भी उस मार्ग का नाम पुनः बदलकर संत गाडगे मार्ग नहीं किया गया है। यह शायद इसलिए हुआ या ऐसा करने वाले इसलिए करने की हिमाकत कर सके क्योंकि संत गाडगे महाराज एक वंचित तबके (धोबी समुदाय) से आते थे। ऐसी हरकत कोई तब तक नहीं करेगा जब तक कि सरकार या सरकारी तंत्र की सहमति न हो।
आज जब हम उनकी जन्मतिथि मना रहे हैं तो इसका मतलब साफ है कि हमें अपने बल-बूते पर अपने महापुरुषों के नाम को आगे ले जाने के लिए यह दृढ़ संकल्प लेना होगा कि हमें भले ही अस्पृश्य जाति का दर्जा दिया गया हो पर हम अपने महापुरुषों के साथ अस्पृश्यता और भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं होने देंगे, हम स्वयं छात्रावास, पुस्तकालय, धर्मशलाएँ आदि का निर्माण अपने महापुरुषों के नाम पर कराएंगे तभी सही मायने में अपने महापुरुषों की जयंती मनाना सार्थक होगा।
इस अवसर पर संत गाडगे महाराज को सादर नमन और आप सभी को विनम्र अभिवादन
नरेन्द्र कुमार दिवाकर
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