*आज बात समुदाय और संगठनों की*
साथियों
प्रायः यह देखा जाता है कि लोग समुदाय में बन रहे संगठनों से नाखुश हैं, होना भी चाहिए क्योंकि संगठनों के द्वारा समुदाय के लिए किए गए कार्यों का अपेक्षित प्रतिफल अभी तक नहीं मिल सका है। हालांकि सभी संगठनों का उद्देश्य एक ही है समुदाय को शिक्षित करना, संगठित करना और साक्षर बनाना आदि।
जितने भी संगठन हैं उन सबमें यह उतावलापन है कि हमारा समुदाय बहुत गिर-पड़ गया है, हमारे समुदाय का कोई संगठन नहीं है इसलिए इसे संगठित करना है। पर शायद हम भूल जाते हैं कि यदि हमारे समुदाय
संगठित नहीं तो आखिर इतने बड़े-बड़े वह भी राष्ट्रीय स्तर और प्रादेशिक स्तर के संगठन बने कैसे? यही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर के भी संगठनों की बाढ़ आ गई है। बहुत से विशेषज्ञ भी हैं इन संगठनों में, फिर भी समाज/समुदाय के असंगठित होने की बात सारे संगठन करते हैं और सबका मुख्य एजेंडा भी समुदाय को संगठित करना ही है। पर शायद ऐसा नहीं है हम सब भूल गए हैं कि हमारे समुदाय/समाज का एक विशाल संगठन था (जबकि हकीकत में कोई संगठन नहीं था और न ही महापुरुषों के नाम पर कोई पंजीकृत संगठन) जो लोगों के सुख-दुःख, शादी-विवाह, जन्म-मृत्यु के अवसरों पर अपने तरीके से लोगों की मदद करता था। हमने उसको भुला दिया है। थोड़ी धूल जरूर पड़ गई है उस पर और आज तो उस धूल को साफ करने के लिए विनम्र सेवक चाहिए, विशेषज्ञ नहीं, ऐसे लोग जिनका आज समुदाय में नितांत आभाव है जो कि ‘झाड़ू-पोंछा’ लगाएं और ‘धूल’ साफ करें न कि कोई उपदेश दें।
तब यदि समुदाय में रहने वाले लोगों से हमारी मित्रता बन जाती है तो थोड़ी बहुत उनकी गलती भी बता सकते हैं। शिक्षा चूंकि आज के समय की नितांत जरूरत है तो यह कह सकते हैं कि आप को अपने बच्चों को पढ़ाए-लिखाएं क्योंकि पढ़ाना-लिखाना बहुत ही जरूरी है बिना इसके कई काम रुक जाते हैं। लेकिन हमें कुछ भी इस भाव से नहीं बताना चाहिए कि उन्हें यह प्रतीत हो कि वो मूर्ख हैं या अज्ञानी हैं, कमजोर हैं और उनको कुछ पता ही नहीं है आदि।
यह ध्यान देना जरूरी है कि हमारे समुदाय में इतने अधिक संगठनों के होने के बाद भी हमारे समुदाय की आपेक्षित प्रगति क्यों नहीं हुई? तो इसका जवाब मेरी नज़र में है क्योंकि हम यह मानते हैं कि हम विशेषज्ञ हैं, हम ही सबकुछ जानते हैं और इसी नाते हमारे भीतर थोड़ा दर्प आ जाता है कि वे लोग हमसे जुड़ना नहीं चाहते हैं? जबकि शायद ऐसा नहीं है क्योंकि उनकी अपनी आवश्यकताएं और जरूरतें हैं जिनको पूरा करने के लिए वे अपने परिवार तक को समय नहीं दे पाते हैं, हमेशा कार्यरत रहते हैं और फिर यह भी तो हो सकता है कि इसके पहले भी कई ‘विशेषज्ञ’ और संगठन के लोग भी तो उनके पास गए होंगे लेकिन उनका कोई हित नहीं हुआ होगा इसलिए भी नहीं जुड़ना चाहते होंगे या हमें समझ नहीं पाते हैं। हमारे समुदाय में बहुत सारे संगठन भी तो ऐसे हैं जिनका मुख्य मुद्दा राजनीतिक ही होता है, न कि समुदाय के लोगों को प्रत्यक्ष प्रगति में सहायक होने वाले मुद्दे। जबकी आज समय की जरूरत है कि संगठन यदि समुदाय की बेहतरी चाहते हैं तो उनके कार्य शिक्षा और रोजगारोन्मुखी हों। जब ऐसा होगा तो समुदाय के लोग जागरूक और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होंगे और फिर आपस में मिलकर कई सारी परेशानियों का हल खुद ब खुद निकाल लेंगे।
इसलिए संगठनों को चाहिए कि समुदाय के लोगों की भलाई के लिए कार्य करें न कि स्वयं एक विशेषज्ञ बनें और उन्हें राजनीतिक सफलता हासिल करने हेतु विकल्प समझें। हमारे समुदाय के कई बड़े संगठनों को इस पर आत्मवलोकन भी करना होगा कि उन्होंने समुदाय के लिए अब तक खास क्या किया है? बहुत से ऐसे पुराने संगठन हैं जिनके पास आज तक न अपना कोई कार्यालय है, न कोई धर्मशाला, न छात्रावास और न कोई निःशुल्क स्वास्थ्य संबंधी (छोटा-मोटा अस्पताल) सेवा प्रदान करने वाला स्थान फिर किस बात के लिए हैं इतने संगठन? कैसे मदद करेंगे समुदाय की उनके पास नियोजन तक नहीं है? जबकि किसी भी समुदाय की तरक्की के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार ही अनिवार्य मुद्दे हैं। इसलिए संगठनों को इस पर अपना ध्यान केन्द्रित करना होगा। विशेष तौर से लॉकडाउन के बाद रोजगार की महती आवश्यकता पड़ेगी इसलिए संगठनों को चाहिए कि रोजगार के बेहतर विकल्पों से लोगों को जोड़कर अपनी खोई हुई छवि पुनः प्राप्त करें और समुदाय के लोगों के बीच अपना भरोसा भी कायम कर सकें।
*नरेन्द्र दिवाकर*
मो. 9839675023