किसी भी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल, एक प्रक्रिया के तहत ही किया जा सकता है। भारत का संविधान अनुसूचित जातियों के सदस्यों को कुछ विशेष सुविधाएं/छूट देता है। ये सुविधाएं या छूट भारत के संविधान के अनुच्छेद 341 के प्रावधानों के तहत अधिसूचित हैं। राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए अनसूचित जातियों की सूची राष्ट्रपति के अधिसूचित आदेश से जारी होती है। इसे संबंधित राज्यों से सलाह-मशविरा के बाद जारी किया जाता है। अनुसूचित जातियों की सूची में आगे किसी जाति को जोड़ने या बाहर करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 341 के उपनियम (2) के तहत कानून लाना पड़ता है। 1950 से 1978 के बीच विभिन्न राज्यों की अनुसूचित जातियों को निर्धारित करने के लिए राष्ट्रपति के द्वारा पांच आदेश जारी किए गए। 1956 से 2015 के बीच संविधान के अनुच्छेद 341 (2) के तहत कानूनों के जरिये इसमें समय-समय पर संशोधन हुआ।
यदि देश के उन प्रदेशों में, जिनमे हमारी जाति ओबीसी में है, अनुसूचित जाति में शामिल होती है तो अनुसूचित जातियों को वर्तमान में चल रही सभी योजनाओं के सारे लाभ मिलेंगे। इनमें से कुछ योजनाएं इस प्रकार हैं, जैसे–मैट्रिक के बाद मिलने वाली छात्रवृति, नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप, राजीव गांधी नेशनल फेलोशिप, उच्च स्तर शिक्षा, नेशनल शेड्यूल कास्ट्स फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन से मिलने वाला रियायती ऋण, अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं को मिलने वाले हॉस्टल की सुविधा आदि। ये जातियां विभिन्न सेवाओं और शिक्षा संस्थानों में दाखिलों में आरक्षण पाने की हकदार भी होंगी।
इस लिए अपनी जाति को संपूर्ण राष्ट्र में एक श्रेणी अर्थात अनुसूचित जाति (एससी) में शामिल कराने के लिए हमें महत्वपूर्ण दस्तावेजों के संदर्भ में काम तो करना ही होगा साथ ही जाटों और मराठों की तरह शक्ति प्रदर्शन करने के लिए भी तैयार रहना होगा। यह काम असंभव भले न हो पर मुश्किल जरूर है। इस संदर्भ में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक जितने भी हमारे छोटे-बड़े सामाजिक संगठन हैं, सभी को वैचारिक और आपसी मतभेद मिटाकर/दूरकर सबको मिल-बैठ कर रणनीति बनानी होगी और फिर संघर्ष करना होगा। अन्यथा हर संगठन अलग-अलग स्तर पर प्रयास करते रहेंगे पर कुछ होने वाला नहीं है। ओबीसी वाले राज्यों में जहां भी हमारे साथ छुआ-छूत और भेदभाव की घटनाएं होती हैं या सामाजिक पिछड़ेपन के मामले प्रकाश में आते हैं उन सबका दस्तावेजीकरण करना होगा और आरक्षण संबंधी पुराने तथ्यों के साथ ही इन सब तथ्यों को भी साक्ष्य के रूप में रखकर आधार बनाना होगा कि आज भी हमारे समाज के लोगों के साथ छुआ-छूत और भेदभाव का बर्ताव हो रहा है और हमारा समाज सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है।
इस मुद्दे पर एससी वाले राज्यों के धोबियों (जिन राज्यों में हमारा समाज एससी के श्रेणी में आता है) को भी साथ आना होगा। हालांकि एससी वाले राज्यों में धोबियों की संख्या बहुत अधिक नहीं (लगभग 55-60 लाख) है फिर भी संघर्ष में एक की संख्या भी बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसलिए सभी को साथ मिलकर तन-मन-धन से लड़ाई लड़नी होगी। बिना हताश हुए अनवरत प्रयास करते रहना होगा क्योंकि वर्ष 2015 में केंद्र सरकार ने संविधान (अऩुसूचित जातियां) आदेश, 1950 में संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी जिसके तहत कुछ जातियों और उनके कुछ हिस्सों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाना था। इसके जरिये छत्तीसगढ़, हरियाणा, केरल, ओडिशा, पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जातियों और छत्तीसगढ़, हरियाणा और केरल में अन्य पिछड़ा वर्ग की केंद्रीय सूची में सुधार करना शामिल है। हां एक बात यह अवश्य ध्यान इन रखनी होगी कि नीं राज्यों में धोबी OBC के तहत आते हैं उन्हें अपने OBC वाले आरक्षण के हिस्से के साथ SC में शामिल किए जाने की मांग का पुरजोर समर्थन करना होगा अन्यथा की स्थिति में SC में शामिल हो जाने के बाद भी कोई फर्क न पड़ेगा, क्योंकि धोबी समुदाय के लोग जिन राज्यों में OBC में आते हैं वहां की आबादी SC वाले धोबियों की अपेक्षा बहुत अधिक है।
*नरेन्द्र दिवाकर*
मो. 9839675023
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