? *दूसरे समाज की आलोचना से ज्यादा अपने समाज की कमियों को स्वीकार कर उसे सुधारना व दूर करना होगा* ?
साथियों
प्रायः यह देखा जाता है कि हम अपनी स्थिति के लिए दूसरों को दोषी ठहराते हैं, जैसे दलितों या यूं कहें कि वंचितों की निम्न स्थिति के लिए हमेशा ब्राह्मणवादियों को दोषी ठहराया जाता है। मैं यह नहीं कहता कि वे दोषी नहीं हैं या जिम्मेदार नहीं हैं, पर क्या हम दूसरों पर दोषारोपण करके प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं, शायद नहीं। हमें दूसरों पर दोषारोपण से ज्यादा स्वयं के उत्थान के बारे में सोचना और करना होगा।
समस्या जब हमारे समाज की है तो दूसरे समाजों की आलोचना करने से हमें क्या प्राप्ति होगी? जब बीमारी हमारे समाज में है तो इलाज भी हमें अपने समाज का ही करना होगा, तो फिर दूसरे समाजों की आलोचना क्यों किया जाय?
इसके पीछे यह कहा जाता है कि हम सहनशील हैं, हमने बहुत कुछ सहा है। तो यह बिल्कुल ग़लत है, क्योंकि यदि हम सहनशील हैं तो अपनी कमी को सुधार कर उसे सुधारने या दूर करने का प्रयत्न करें और उस व्यक्ति के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करें जो हमें हमारे समाज की कमी या बीमारी के प्रति सावधान करे।
हमें अपने समाज के महापुरुष गाडगे महाराज से सीख लेनी होगी। जब उन्होंने देखा कि वंचित वर्ग के बच्चे दूर-दराज के गांवों से नंगे पांव पैदल चलकर पढ़ने जाते थे तो उन्हें कमरे के बाहर बैठाया जाता था वह भी दरवाजे से हटकर। ऐसा इसलिए किया जाता था जिससे वे दरवाजे से हटकर बैठेंगे तो उच्च जाति के विद्यार्थी और अध्यापक छू न जाएं और वे चाहते भी नहीं थे के वे पढ़ें। वंचित वर्ग के बच्चे दीवाल के दूसरी तरफ बैठकर पढ़ने का प्रयास करते थे। गाडगे बाबा को यह बात अच्छी नहीं लगती थी परंतु उन्होंने इसका विरोध न कर वंचित वर्ग के उन बच्चों की पढ़ाई के लिए एक अनूठा रास्ता निकाला और 1917 में संत चोखामेला धर्मशाला (जो कि उस समय 11 लाख में तैयार हुई थी।) सहित छात्रावासों, स्कूलों और अस्पतालों के निर्माण करवाया। यहां यह कबिलेगौर है कि उन्होंने किसी का विरोध कर अपनी ऊर्जा और समय व्यय नहीं होने दिया। उसी ऊर्जा और समय को एक सृजनात्मक कार्य में लगाया और वंचित तबकों के लिए छात्रवासों और स्कूलों का निर्माण करवाया। क्योंकि वे जानते थे कि जब बीमारी अपने समाज में है तो दूसरों को दोष देने का क्या फायदा? और उस बीमारी का इलाज स्कूलों और छात्रावासों का निर्माण करवाकर किया। हम सभी यह जानते हैं कि गाडगे बाबा ने विभिन्न क्षेत्रों पर केन्द्रित लगभग 60 से अधिक संस्थाओं का निर्माण करवाने में सफल हुए तो यह उनकी इसी प्रवृत्ति का परिणाम था कि वे किसी पर दोषारोपण न कर स्वयं उस कार्य को परिणति तक पहुंचाने में विश्वास करते थे और यह करके भी दिखया। यही कारण था कि उनकी मृत्यु पर यशवन्तराव ब. चव्हाण ने कहा था कि अकोला जिले में एक मामूली धोबी के घर जन्म लेकर उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में दिन-दुखियों के लिए बहुत बड़ा कार्य किया…इस देश में सामाजिक क्रांति कभी नहीं हुई तो इसका कारण यह है कि क्रांतिकारी विचारों वालों को हम मंदिर में बिठाकर समाप्त कर देते हैं।
आज यही काम हमारा समाज करने में लगा हुआ है। समाज के बहुत सारे लोग गाडगे महाराज को भगवान बनाने पर तुले हुए हैं, उनकी मूर्ति को भी मंदिर में स्थापित कर पूजा अर्चना की जा रही है। उनकी आरती/चालीसा भी बना कर स्तुति वंदना की जा रही है। ऐसा करने वालों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि उन्हें पूजा-अर्चना तक सीमित न करें, अपितु उनके विचारों का प्रचार-प्रसार जन-जन तक करें। क्योंकि मूर्ति स्थापित करने पर कोई भी मूर्ति को नष्ट कर सकता है पर विचार कभी नष्ट नहीं होता, अपितु जितना उसे नष्ट करने की कोशिश की जाएगी उससे प्रचार-प्रसार की गति उतनी ही अधिक तीव्र होगी और वह विचार आंदोलन का रूप धारण कर लेगा।
इसलिए दूसरों की आलोचना छोड़ अपने समाज की कमी को स्वीकार कर दूर करने या सुधारने का प्रयत्न करें।
??इस नए साल में कुछ ऐसा कर जाएं।
कि उपेक्षित और मुरझाए से चेहरे भी मुस्कराएं।।??
*नरेन्द्र दिवाकर*
मो. 9839675023