सोचने वाली बात यह है कि चारों ओर फैले लॉन्ड्री एन्ड ड्राइक्लीनिंग के कारोबार में हमारी क्या भागीदारी है? कभी केवल हम्ही इस पेशे में थे और बाकी सब हमारे द्वारा धुले और रंगे हुए कपड़े पहनते थे। हां यह जरूर था कि हमारे श्रम का शोषण होता था लेकिन हमारे हुनर का कोई मुकाबला नहीं था और न ही कोई कर सकता था। यदि हमारे पुरखों ने दुनिया का पहला साबुन न खोजा होता और दुनिया को साफ कपड़े पहनने की तमीज न सिखाई होती तो आज पूरी दुनिया गंदे और मैले कुचैले कपड़े पहनकर घूम रही होती, लेकिन आज तथाकथित उच्च जातियों की साजिशों के कारण ही हमारे लोग उन्हीं की दुकानों में मजदूर बनकर रह गए हैं, हमारे हुनरमंद लोगों के हाथ अब अपने को मालिक बनाने के लिए नहीं बल्कि किसी और को मालिक बनाने के लिए चल रहे हैं। समय बदल गया है जो कभी हुनरमंद हुआ करता था जिसका हुनर कभी किसी के आदेश का मोहताज नहीं होता था आज दुकान-दुकान काम खोजने को विवश हो गया है। जब हम सिर्फ सेवा की तरहइस कार्य को करते थे तब हम और हमारा पेशा अछूत कहे जाते थे लेकिन अब जब उन्होंने इसे अपना लिया है तब यह प्रोफेशन (लॉन्ड्री) बन गया है और इसको करने वाली तथाकथित ऊंची जातियां प्रोफेशनल। हमारे पेशे की हमारी अपनी शब्दावली थी ‘लॉन्ड्री वाले’ जिसको खत्म कर अपनी दुनिया ही रचने लगे हैं। हम धुलाई के पेशे को घृणित ही मानते रहे पर यह आज 2 लाख 20हजार करोड़ डॉलर सालाना से अधिक का व्यवसाय हो गया है। अब ज्यादा सोचने का समय नहीं है, वक्त की रफ्तार बहुत तेज है, जिनके पास यह हुनर है उन्हें बतौर प्रोफेशनल इस व्यवसाय/पेशे में कूद पड़ना चाहिए क्योंकि अब तो इसके लिए सरकारें आर्थिक सहयोग/ऋण भी उपलब्ध कराती हैं। यदि आर्थिक सहयोग/ऋण नहीं भी उपलब्ध हो पाता है तो अपनी क्षमतानुसार छोटी या बड़ी शॉप खोली जा सकती है। इसमें भी काफी संभावनाएं हैं, क्योंकि धरती पर जब तक मानव जीवन है तब तक कपड़े बुनने, धुलने-इस्त्री करने, रंगने (अर्थात कपड़ों की परिसज्जा करने वाले) आदि वाले लोगों की आवश्यकता बनी रहेगी।
जब हमारे पुरखे घर-घर जाकर कपड़े लेते-देते थे तब शोषण होता था पर आज वे पिकअप & डेलीवरी की सुविधा के साथ आधुनिक प्रोफेशनल बन गए हैं। दिन-प्रतिदिन इसमें आधुनिक मशीनों/तकनीकों का समावेश भी होता जा रहा है, हमें नौकर नहीं मालिक बनना है साथ ही साथ अपने हुनर को और अधिक निखारना है। नए-नए फैशनेबल कपड़ों की धुलाई अलग है इसलिए हमें भी कपड़ों की वैरायटी के साथ साथ नई-नई मशीनों और धुलाई रसायनों से भी अपडेट होना होगा तथा अपने हुनर के बल पर मालिक बनना है और नौकरी करने वाला (Job Seeker) नहीं बल्कि नौकरी देने वाला (Job Provider) बनना है। साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि मशीनें चाहे कितनी भी हाईटेक और अत्याधुनिक क्यों न बन जाएं पर हाथों के हुनर का मुकाबला कभी नहीं कर पाएंगी।
*नरेन्द्र दिवाकर*
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