मैंने अक्सर देखा व सुना है कि जब भी हमारे समुदाय के लोग कहीं मिलते हैं तो शायद ही व्यवसाय (Bussiness) या उद्योग को लेकर कोई चर्चा आपस में करते हों। कारण यह है कि अधिकतर लोग सरकारी नौकरी वाले ही होते हैं इसलिए वेतन/प्रमोशन/ट्रांसफर/इंक्रीमेंट/डी. ए. आदि से जुड़े मुद्दों पर ही चर्चा करते हैं। (मेरे कहने का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि नौकरी से जुड़े मुद्दों पर चर्चा ही न करें।)
यदि उनके बीच कोई व्यवसाय या स्वरोजगार वाला व्यक्ति होता भी है तो उसके व्यवसाय से जुड़े मुद्दों को लेकर शायद ही कोई चर्चा होती हो। जबकि व्यवसायी वर्ग में ठीक इसके विपरीत होता है। हम व्यवसाय (Bussiness) को अछूत की ही तरह ही मानकर चलते हैं, ऐसा लगता है जैसे हमारा दूर-दूर तक इससे कोई संबंध ही नहीं है, पंजाबी/सिंधी/बनिया ही इसके लिए बने हैं।
हम (समुदाय के) लोगों को चाहिए कि नौकरी से जुड़े मुद्दों के साथ-साथ व्यवसाय व उद्योग आदि पर भी चर्चा करें, सफल उद्योगों व उद्यमियों की (प्रेरणादायक कहानियां व घटनाओं की) भी चर्चा करें क्योंकि हमारे समुदाय की अधिकांश आबादी स्वरोजगार या छोटे-मोटे व्यवसाय, मजदूरी आदि में ही लगी हुई है इसलिए इन पर चर्चा होना बहुत ही जरूरी है जिससे समुदाय के लोगों में व्यवसाय/उद्योग को करने/अपनाने या बढ़ाने के प्रति सकारात्मक माहौल बनेगा।
जब हमारे समुदाय के लोग भी व्यवसाय करेंगे तो गाहे-बगाहे घर में व्यवसाय की चर्चा चलेगी ही तो बच्चे भी इससे जुड़ी शब्दावलियों से परिचित होंगे तो परिवार में भी व्यवसाय का माहौल बनेगा। नौकर बनने की प्रवृत्ति में कमी और मालिक बनने की प्रवृत्ति में वृद्धि होगी। कोई बिजनेस शुरू होगा तो घर के हर सदस्य कुछ न कुछ करेंगे। कोई मार्केटिंग करेगा, कोई हिसाब-किताब करेगा, कोई बिजनेस के सिलसिले में विदेश जाएगा, कोई कम्प्यूटर पर काम करेगा तो कोई बैंक का काम करेगा आदि-आदि। यकीन मानिए जब बिजनेस में सब योगदान देंगे तो घाटे का सौदा कभी नहीं बनेगा। घर की महिलाएं व बच्चे भी काफी मददगार साबित हो सकते हैं। तब गांधी की हर हाथ काम वाली उक्ति और अम्बेडकर साहब की गांव छोड़ो, शहर जाओ, शहर छोड़ो विदेश जाओ और नौकरी मांगने वाले नहीं नौकरी देने वाली उक्ति चरितार्थ होगी।
उदाहरणार्थ अगर बात लॉन्ड्री और ड्राइक्लीनिंग व्यवसाय की ही करें तो हमारे समुदाय के लोगों ने इसे जातीय पेशा, घृणित और अछूत या कम फायदे और अधिक मेहनत वाला पेशा मानकर छोड़ दिया है या छोड़ रहे हैं जबकि पंजाबी, सिंधी, बनिया, ब्राह्मण आदि लोग लाखों/करोड़ों खर्चकर बड़े-बड़े प्लांट लगाकर खूब पैसा कमा रहे हैं। अगर इसमें फायदा या मुनाफ़ा नहीं होता तो वे इसे कतई न अपनाते। इसका बाजार भी 2025 तक 15 बिलियन डॉलर (बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार) प्रतिवर्ष होने का अनुमान है। हर वर्ष लॉन्ड्रेक्स एक्सपो का आयोजन होता है (इस बार 23-25 फरवरी 2022 तक नोएडा में हो रहा है) जिसमें अत्याधुनिक भारी-भरकम मशीनों की प्रदर्शनी और बिक्री के साथ-साथ दुनिया भर के लॉन्ड्री एन्ड ड्राइक्लीनिंग प्रोफेशनल्स एकत्र होकर इस क्षेत्र से जुड़ी कमियों और संभावनाओं पर चर्चा करते हैं पर शायद ही उसमें हमारे समुदाय के लोगों की भागीदारी होती हो क्योंकि हमारे समुदाय के अधिकांश पढ़े-लिखे लोग इस पेशे को घृणित या कमतर मानते हैं व्यवसाय या बिजनेस तो इसे कतई नहीं मानते व जाते भी नहीं हैं और जो लोग इस पेशे में पुश्तैनी रूप से लगें हैं उन्हें इसके बारे में पता नहीं होता, जाएंगे भी तो प्रदर्शनी तक ही सीमित रहेंगे क्योंकि सेमिनार में तो लॉन्ड्री प्रोफेशनल्स लोग अंग्रेजी भाषा में ही बात करते हैं।
अभी हाल ही में 30 दिसंबर 2021 से 1 जनवरी 2022 तक वाराणसी में दलित इंडियन चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स एन्ड इंडस्ट्री(DICCI) की तरफ से प्रदर्शनी कम ट्रेडफेयर का आयोजन हुआ था जिसमें हमारे समुदाय के लोग कम ही गए होंगे यदि गए भी होंगे तो इसके बारे में अपना अनुभव लिखना उचित नहीं समझा होगा जिससे अन्य लोग भी जानें।
हमारे समुदाय के अधिकांश बच्चे आज भी रटी-रटाई डिग्रियों और नौकरियों के पीछे न चाहते हुए भी भाग रहे हैं, क्योंकि घर-परिवार में बिजनेस का माहौल ही नहीं है। जबकि आज जमाना तकनीक और उद्यमों का भी है। तमाम सारे उद्यमों को शुरू करने, आगे बढ़ाने व इनमें बने रहने हेतु विशेष ट्रेनिंग कोर्सेज चल रहे हैं, ट्रेड फेयर भी आयोजित हो रहे हैं पर हम इनसे बहुत दूर हैं। हम बिजनेस से जुड़ी खबरों, पत्र-पत्रिकाओं और माहौल से भी दूर हैं और बच्चों को भी दूर रखते हैं इसलिए हमें व्यापार की दुनिया के दांवपेंच नहीं समझ आते। पर अब हमें बहानेबाजी (कौन सा बिजनेस करें, कैसे करें, पूंजी नहीं है, कौन सम्हालेगा? आदि-आदि) छोड़कर इसकी ओर रुख करना होगा, मेहनत करना होगा क्योंकि किसी ने सच ही कहा है कि जहां चाह, वहां राह।
नौकरी वालों के पास जोखिम (Risk) लेने की क्षमता तो है कि वे बिजनेस शुरू कर सकते हैं पर वे बिजनेस शुरू करने की ज़हमत ही नहीं उठाते और बिजनेस को अपने ओहदे के प्रतिकूल भी मानते हैं जबकि हमें डॉक्टरों से सीख लेना चाहिए कि अधिकांश डॉक्टर्स सरकारी या निजी चिकित्सालयों में जॉब भी करते हैं और घर के ही डिग्रीधारी सदस्य को हॉस्पिटल चलाने में सहयोग भी करते हैं।
यह भी ध्यान रखना होगा कि यदि हम नौकरी करते हैं तो हमारे बच्चों को भी नौकरी पाने की पूरी प्रक्रिया को फिर से करनी पड़ेगी तब भी जरूरी नहीं कि वह नौकरी पा ही जाए, लेकिन यदि हमारा कोई बिजनेस भी है तब हमारे बच्चे को यदि नौकरी न भी मिली तो 20-30 साल का चलाया हुआ बिजनेस मिलेगा जिसमें वह और लोगों को रोजगार भी दे सकता है तमाम उदाहरण आपके सामने हैं।
इसलिए अब हमें बिजनेस की तरफ भी रुख करना/कराना होगा क्योंकि कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती।
यदि आज आप मेरा यह लेख (अन्य लेख भी) पढ़ रहे हैं और में जिस मुकाम पर हूं तो इसके पीछे मेरे छोटे भाई का बिजनेस करना (हमें यहां तक पहुंचाने में बहुत जोखिम उठाए हैं उसने) ही है कि मैं यहां तक की यात्रा कर पाया हूँ।
*नरेन्द्र दिवाकर*
मो. 9839675023