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*रेह अर्थात Fullers_earth*

मंझनपुर से वापस लौटते समय जब रास्ते में साथी *Mamta Narendra Diwakar* को ऊसर भूमि से निकलने वाली दुनिया के सबसे पर्यावरणानुकूल साबुन (रेह) और उसकी तमाम खूबियों के बारे में बताया तो वह अपने आपको रोक न सकीं और देखने व इकट्ठा करने का आग्रह…

अपने समुदाय की प्रगति के लिए सामूहिक/सामुदायिक प्रयास?????? से भी बहुत कुछ करना होगा*

साथियों पिछले लगभग 70 सालों में देश का विकास तो बहुत हुआ है लेकिन इसमें न तो सभी तबकों, समूहों और समुदायों की समुचित भागीदारी हो सकी है और न ही सभी तबकों का विकास। हमारे समुदाय/समाज की स्थिति भी कुछ इसी तरह है। हम आज भी विकास और…

*वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन फ़ॉर धोबिस (WOrD) के सौजन्य से प्रयागराज उत्तर प्रदेश में स्थापित संत गाडगे…

23 फरवरी, 2021(मंगलवार) को स्वच्छता के समाजशास्त्र के जनक, बुद्धिवादी आंदोलन के प्रणेता, मानवता के अग्रदूत, निष्काम कर्मयोगी संत गाडगे महाराज जी की 145वीं जयंती के अवसर पर पन्ना लाल रोड धोबीघाट सिविल लाइंस (चन्द्र शेखर आज़ाद पार्क के पीछे)…

एक महान समाज सुधारक- संत गाडगे महाराज By नरेन्द्र दिवाकर

23 फरवरी को एक ऐसी सख्शियत की जयन्ती है जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज की बेहतरी हेतु लगा दिया। अपने घर-परिवार की परवाह न करते हुए सारा समय समाज की सेवा में बिता दिया। वो सख्शियत हैं- संत गाडगे महाराज। जिन महान विभूतियों पर हमें गर्व…

*महान समाज सुधारक- निष्काम कर्मयोगी संत गाडगे महाराज*

23 फरवरी को एक ऐसी सख्शियत की जयन्ती है जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज की बेहतरी हेतु लगा दिया। अपने घर-परिवार की परवाह न करते हुए सारा समय समाज की सेवा में बिता दिया। वो सख्शियत हैं- संत गाडगे महाराज। जिन महान विभूतियों पर हमें गर्व…

*क्या है महीन जातिवाद?*

जो लोग जितना अधिक पढ़े-लिखे हैं वे उतना ही महीन जातिवाद करते हैं जो हम/आप को आसानी से समझ नहीं आता। हम बड़ी आसानी से कह देते हैं कि अरे! आजकल ऐसा कुछ नहीं है। लेकिन ऐसा होता है, हो सकता है आपको यकीन न हो। तो इसलिए एक उदाहरण बताता हूँ जो कि…

*लोगों की संख्या बल का कोई महत्व नहीं*

*लोगों की संख्या बल का कोई महत्व नहीं* इतिहास गवाह है कि क्रांति के लिए लोगों की संख्या बल भर कभी पर्याप्त नहीं होती। किसी भी बड़ी क्रांति की रचना सामान्यतयः बड़े जनसमूहों के बजाय आंदोलनकारियों के छोटे-छोटे समूहों ने ही की है। मेरा अपना…

*क्या है महीन जातिवाद?*

जो लोग जितना अधिक पढ़े-लिखे हैं वे उतना ही महीन जातिवाद करते हैं जो हम/आप को आसानी से समझ नहीं आता। हम बड़ी आसानी से कह देते हैं कि अरे! आजकल ऐसा कुछ नहीं है। लेकिन ऐसा होता है, हो सकता है आपको यकीन न हो। तो इसलिए एक उदाहरण बताता हूँ जो…

*आगे बढ़ने के लिए जरूरी है सहयोगात्मक दक्षता*

*आगे बढ़ने के लिए जरूरी है सहयोगात्मक दक्षता* हमें आगे बढ़ने के लिए विभिन्न प्रकार की दक्षताओं की जरूरत है लेकिन ध्यान यह रहे कि विभिन्न प्रकार की दक्षताएं तब तक कोई खास मायने नहीं रखतीं, जब तक कि उसमें बहुत से दूसरे लोगों के साथ आपसी सहयोग…

*संस्थाओं को बैसाखी की तरह काम करना चाहिए*

संस्थाएं समाज से हैं न कि समाज संस्थाओं से। इसलिए संस्थाओं का उद्देश्य अपने लक्ष्य की पूर्ति होना चाहिए न कि किसी एक समूह विशेष या समाज के किसी एक हिस्से विशेष के हितों की पूर्ति। राजीव वोरा कहते हैं कि- स्वस्थ समाज को संस्थाओं की जरूरत…
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